भुवनेश्वर में मंदिर तो बहुत सारे हैं पर उनमें से कुछ मन्दिर है जो पर्यटकों को ख़ास आकर्षित करते हैं। इन मंदिरों का आकर और उनके प्रांगण का सौंदर्य सभी को अपनी ओर खींचता है।
भावनेश्वर अपने मंदिरों की शोभा और कारीगरी के लिए प्रसिद्ध है। कारीगरी बेहद ही उत्कृष्ट और इन्हे देखने मात्र से ही ऐसा लगता है जैसे उन मूर्तियों में जान आ गई हो।
ऐसे ही कुछ प्रमुख भुवनेश्वर के मंदिरों का नाम और उनके बारे कुछ विस्तृत विवरण मैं इस लेख में आपके साथ साझा करुँगी।
भुवनेश्वर में 11 मंदिर जो हर यात्री को मत्रमुग्ध कर देंगे
ओड़िशा की राजधानी भुवनेश्वर “मंदिरों के शहर” के नाम से भी जाना जाता है। करीब 500 से ज्यादा मंदिरों के इस शहर में हमेशा एक धार्मिक भावना जागृत रहती है।
भुवेश्वर के कई मंदिर प्राचीन काल में बनाए गए हैं। इतिहास के पन्नों को अगर देखा जाए तो काफी मंदिरों का निमार्ण दसवीं शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी के बीच किया गया था।
तो आइये देखें कौनसे ऐसे मंदिर हैं भुवनेश्वर में जहाँ आपको सैलानी के रूप में ज़रूर देखना चाहिए।
1. लिंगराज मंदिर: भुवनेश्वर का सबसे विशिष्ठ शिव मंदिर
यह मंदिर यहां के सबसे प्राचीनतम मंदिर में से एक है। भुवनेश्वर में ज्यादा तर शिव मन्दिर हैं और सभी शिव लिंगों में से श्री लिंगराज को लिंगों का राजा माना जाता है। यदि आप कभी भुवनेश्वर आएं तो लिंगराज मंदिर जाना न भूलें क्यूंकि धार्मिक स्थल होने के साथ- साथ यह कला का उत्कृष्ट यमुना भी है।
प्रांगण में गणेश जी, कार्तिकेय जी और माता पार्वती के छोटे छोटे मन्दिर मुख्य मंदिर के साथ संलग्न है। मन्दिर के मुख्य द्वार पर शिव जी के वाहन नन्दी जी एक बड़े से स्तम्भ के ऊपर विराजमान हैं। पूरे मंदिर के परिक्रमा करने के लिए करीब 45 मिनट का समय लग जाता है।
कहाँ स्थित है ?
पुराना टाउन में स्थित है। गैराज चौक रास्ते से 500 मीटर के दूरी पर पड़ता है मंदिर। |
वास्तु-कला विवरण
ययाति केशरी ने 12 वीं शताब्दी में मंदिर का निर्माण करवाया था। मंदिर की उच्चता करीब 180 ft. है और ऊपर का हिस्सा बर्तुल जैसा है। शीर्ष पर एक कलश स्थापित किया गया है। मंदिर की पार्श्व-भित्तियों पर पफूल व मानव और पशु पक्षियों की गई नक्काशी अत्यन्त मनोरम है। |
मंदिर दर्शन का समय
6 am- 8 pm मंदिर प्रांत 4 बजे से खुल जाता है। शिव जी की मंगल आरती, स्नान एवं पुष्प चढ़ाने के बाद उनके समक्ष भोग लगाया जाता है। उसके बाद ही साधारण दर्शन के लिए प्रभु सुसज्जित होते हैं। दोपहर को भोग लगने के समय आधे घंटे तक दर्शन निषिद्ध किया जाता है और उसके बाद रात के 8 बजे तक दर्शन सुविधा उपलब्ध रहती है। |
प्रवेश शुल्क
निशुल्क |
विशेष समारोह
शिवरात्रि – विशेष समारोह का आयोजन किया जाता है। भजन कीर्तन के साथ सारी पूजा अर्चना पूरे विधि विधान के अनुसार की जाती है। चंदन यात्रा – मंदिर से थोड़ी दूरी पर “बिंदू सागर” सरोवर पर प्रत्येक वर्ष यह त्योहार मनाया जाता है। इस अवसर पर शिव जी (प्रतिनिधि प्रतिमा) का नौ विहार(चाप खेल) करने की एक विधि है। अशोकाष्टमी – अप्रैल या मई के महीने में इस दिन शिव जी का रथयात्रा आयोजित की जाती है। भगवान शिव उनके मौसी के घर यानी कि “मौसीमां” मंदिर को घूमने 8 दिन के लिए जाते हैं। |
2. अनंत वासुदेव मंदिर: भुवनेश्वर के सबसे खूबसूरत प्राचीन मंदिरों में से एक
अनंत वायदेव मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। यहां भगवान विष्णु के अलावा प्रभू बलराम , माता सुभद्रा और माता लक्ष्मी की प्रतिमा भी स्थापित हैं।इनकी पूजा विधि भी लिंगराज जी के अनुरूप ही है।
मंदिर के प्रांगण पर एक भोग मंडप (आनंद बाजार) है जहां पर प्रसाद बनाये जाते है । बाद में भक्तों के लिए प्रसाद (अभढा़) उपलब्ध होता है । प्रसाद सेवन का समय 12 बजे से 3 बजे तक ही रहता है। यहाँ आएं तो प्रसाद का सेवन करना न भूलें।
कहाँ स्थित है ?
यह मंदिर लिंगराज मंदिर के पास पुराना टाउन इलाके पर अवस्थित है। |
वास्तु-कला विवरण
इस मन्दिर का निर्माण भी उसी 12 वीं शताब्दी में हुआ था। मंदिर के शिखर की ऊंचाई करीब 120 ft. होगी और शीर्ष पर कलश स्थापित है जिस के ऊपर विष्णु जी के चक्र स्थापित है। मंदिर की पार्श्व-भित्तियों पर की गई कलाकृतियां अत्यंत मनमोहक है। मंदिर के प्रत्येक पाषाण पर की गई अलंकरण यात्रिओं को खूब भाता हैं। |
मंदिर दर्शन का समय
6 am- 8 pm |
प्रवेश शुल्क
निशुल्क |
3. केदार-गौरी मंदिर: भारत के आठ अष्टशंभु मंदिरों में से एक
इस मंदिर के परिसर में दो मंदिर स्थित है। एक शिव जी का (केदार भगवन शिव का एक और नाम है ) और एक माता पार्वती यानी कि माता गौरी का मंदिर ।
मंदिर के परिसर में गणेश जी और हनुमान जी की प्रतिमा भी स्थापित हैं। यदि आप फोटोग्राफी में रुचि रखते हैं, तो यह मंदिर पर्याप्त इसके अवसर प्रदान करता है।
कहाँ स्थित है ?
पुराना टाउन में लिंगराज से कुछ ही दूरी पर स्थित है। |
वास्तु-कला विवरण
इस मन्दिर का निर्माण भी उसी 11 वीं शताब्दी के अंदर हुआ था। मंदिर की मीनार पर 5 रथ हैं। |
मंदिर दर्शन का समय
6 am- 8 pm |
प्रवेश शुल्क
निशुल्क |
विशेष समारोह
शिव विवाह – प्रत्येक वर्ष भगवान लिंगराज (प्रतिनिधि प्रतिमा) और माता गौरी का विवाह का एक भव्य समारोह आयोजन किया जाता है। दुर्गा पूजा – षष्ठी पूजा से लेकर दशमी पूजा तक माता को नूतन वस्त्र और नवी अलंकार से मंडित किया जाता है। |
4. मुक्तेश्वर मंदिर: इतिहास प्रेमियों और श्रद्धालुओं के लिए उपयुक्त गंतव्य
मुक्तेश्वर भुवनेश्वर में स्थित मंदिरों में एक और प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर शिव को समर्पित है और इसके गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित हैं। यह मंदिर अपनी सुन्दर वास्तुकला के लिए जाना जाता है और इस कारण यात्रिओं को बहुत आकर्षित करता है।
मंदिर के पार्श्व- भित्तियां सुन्दर नर्तकों के विभिन्न भंगिमा, नाग-नागी, गंगा, यमुना तथा नटराज की प्रतिमा से सुसज्जित है। यह मंदिर कलिंग स्थापत्यकला के रत्न के हिसाब से परिचित है। मंदिर के प्रांगण में एक छोटा सा कुआं है जिसको “मरिची कुंड” कहते हैं, जिस में छोटे छोटे मछलीयां है।
कहाँ स्थित है ?
केदार-गौरी मंदिर के पास, पुराना टाउन में स्थित है |
वास्तु-कला विवरण
मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में किया गया था। इसे “ओडिशा वास्तुकला” या “कलिंग वास्तुकला” के रत्न” के रूप में भी जाना जाता है। इस मन्दिर के दरवाज़े के पूर्व एक बड़ा सा तोरणद्वार है जिस पर की गई ललित कलाएं बहुत ही आकर्षक है। मंदिर के बाकी हिस्सों में की गयी नक्काशी भी अत्यन्त उत्कृष्ट है। |
मंदिर दर्शन का समय
8 am- 6 pm |
प्रवेश शुल्क
निशुल्क |
विशेष समारोह
मुक्तेश्वर नृत्य कला समारोह – प्रत्येक वर्ष जनवरी में यहाँ भव्य समारोह का आयोजन किया जाता है, जिसमें हर प्रान्त से नर्तक दल अपनी नृत्यकला का प्रदर्शन करते हैं। |
5. ब्रह्मेश्वर मंदिर: भुवनेश्वर के सबसे शांतिपूर्ण मंदिरों में से एक
यह भुवनेश्वर में स्थित मेरे पसंदीदा मंदिरों में से एक है। यह मंदिर अन्य मंदिरों की तुलना में अधिक शांतिपूर्ण है क्योंकि यह मुख्य सड़क पर नहीं बल्कि सड़क के अंदर स्थित है। मंदिर के बाहरी हिस्सों में एक छोटा सा उद्यान भी बहुत सुंदर है।
शिव शंकर लिंग स्वरूप वहां गर्भगृह में विद्यमान हैं और यहाँ बहुत से भक्त उनके दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में की गई नक्काशी भी पर्यटकों को आकर्षित करती है।
कहाँ स्थित है ?
यह ब्रह्मेश्वरपाटना पर अवस्थित है जो लिंगराज मंदिर से 6 km के दूरी पर है। |
वास्तु-कला विवरण
मंदिर का निर्माण ग्यारह वीं शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी के बीच हुआ था। कहा जाता है कि यह मंदिर सोमवंशिओं की रानी राजा उदयकेशरी के माता कोलाबती देवी के द्वारा निर्मित किया गया था। इस मंदिर के प्रत्येक शिला खंड पर की गई स्थापत्यकला एवं चित्रकारी बहुत ही सुंदर है जो कलिंग स्थापत्यकला के रूप में विख्यात है। |
मंदिर दर्शन का समय
8 am- 6 pm |
प्रवेश शुल्क
निशुल्क |
6. राजा-रानी मंदिर: नागर शैली में बना एक सुंदर मंदिर
यह मंदिर “प्रेम मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर की विशेष बात है कि यहां पर कोई देवी या देवता नहीं है।
मंदिर की विस्तृत मूर्तिकला देखने वालों को बेहद आकर्षित करती है। मूर्तिकला के साथ साथ यहाँ एक बागीचा भी हैं जहाँ आप अच्छा समय बिता सकते हैं। मैं सभी यात्रिओं को यहाँ जाने की सलाह ज़रूर दूंगी।
कहाँ स्थित है ?
मंदिर रवि टॉकीज मार्ग के 200mtr. दूरी पर है। |
वास्तु-कला विवरण
मंदिर का निर्माण 11 वीं शताब्दी में हुआ था। मंदिर पंचरथ शैली में बनाया गया है और इसके पार्श्व भित्तयों पर जोड़ों के एवं महिलाओं की कामुक नक्काशी बनाई गई है। मंदिर के शिला खंड पर भगवान शिव के नटराज दृश्य, माता पार्वती और शिव के विवाह, नर्तकी के भंगिमा, अपनी बच्चे को दुलारती, वृक्ष के शाखाओं को पकड़ती, पक्षी को सहलाने की दृश्य भी आप देख सकते है। |
मंदिर दर्शन का समय
10 am- 5 pm |
प्रवेश शुल्क
भारतीय नागरिकों के लिए 25 रुपये और गैर-भारतीयों के लिए 300 रुपये। |
7. चौंसठ योगिनी मंदिर: बिना छत का एक अनूठा भुवनेश्वर मंदिर
भुवेनश्वर से थोड़ी दुरी पर स्थित इस मंदिर को महामाया मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। भुवनेश्वर में मानक ऊंचे मंदिरों के विपरीत, यह बिना छत के एक खुला गोलाकार मंदिर है।
भारत में केवल 9 चौसठ योगिनी मंदिर हैं, यह उनमें से एक है। मुझे यह मंदिर बहुत ज़्यादा इसलिए पसंद है क्यूंकि यह बाक़िओं से बिल्कुल अलग है। अगर आप समय निकल सकें तोह यहाँ ज़रूर जाएं।
कहाँ स्थित है ?
यह मंदिर भुवनेश्वर से बस 15 km. की दूरी पर है। |
वास्तु-कला विवरण
मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी के दौरान ब्रम्हा वंश की रानी हीरादेवी ने करवाया था। यहां पर योगिनियों की प्रतिमा नृत्य की विभिन्न मुद्राओं में विद्यमान हैं। दशभुजा महामाया इस शक्ति पीठ के इष्टदेवी हैं। इस मंदिर के मध्य भाग में एक चंडी मंड़प है जिस पर चार भैरव और चौंसठ योगिनियों की प्रतिमा है। योगिनियों की प्रतिमा काले पत्थर से निर्मित है। |
मंदिर दर्शन का समय
8 am- 6 pm |
प्रवेश शुल्क
निशुल्क |
8. पर्शूरामेश्वर मंदिर: ओडिशा के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक
पश्चिम मुखी यह मंदिर भुवनेश्वर के सबसे प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। यह मंदिर बाकी मंदिरों की तुलना में छोटा है पर बहुत सुन्दर है।
सबसे अच्छी बात यह है कि चूंकि इस एक ही क्षेत्र में कई मंदिर हैं, आप एक मंदिर परिसर से दूसरे मंदिर परिसर में चल कर जा सकते है।
कहाँ स्थित है ?
यह मंदिर केदार-गौरी मंदिर के निकट है। |
वास्तु-कला विवरण
मंदिर का निर्माण 7वीं और 8वीं शताब्दी के बीच नागर शैली में किया गया था। मंदिर के पार्श्व भित्तियां पर नटराज, लकुलीष, देवी दुर्गा की मूर्तियां है। मंदिर पर की गई कलाकृतियां और नक्काशी में से हर- पार्वती, अर्धनारीश्वर, विष्णु की मूर्ति सबसे उत्कृष्ट है। |
मंदिर दर्शन का समय
7 am- 6 pm |
प्रवेश शुल्क
निशुल्क |
9. भास्करेश्वर मंदिर: शिव भक्तों और कला प्रेमियों के लिए एक खूबसूरत स्थल
यह मंदिर भी भुवनेश्वर के प्रसिद्धि मंदिरों में एक है जहां गर्भगृह पर नौ फ़ीट उच्चता का शिव लिंग विद्यमान है।
सबसे आकर्षक बात यह है कि मंदिर का बाहरी हिस्सा एक रथ जैसे प्रतीत होता है। मंदिर की कलाकृतियां भी बेहद खूबसूरत है और भारतीय मंदिर वास्तुकला में रुचि रखने वाले लोग यहाँ अवस्य जाएँ।
कहाँ स्थित है ?
यह मंदिर रवि टॉकीज मार्ग से 2 km की दूरी पर है। |
वास्तु-कला विवरण
मंदिर का निर्माण 12 वीं शताब्दी में किया गया था। मंदिर का निर्माण पंचरथ योजना में किया गया है। |
मंदिर दर्शन का समय
7 am- 6 pm |
प्रवेश शुल्क
निशुल्क |
10. राम मंदिर: शहर के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक
हालांकि यह मंदिर भुवनेश्वर के प्राचीन मंदिरों की तुलना में काफी नया है, लेकिन यह बहुत लोकप्रिय है। इस मंदिर में राम, लक्ष्मण और सीता माता की मूर्तियां स्थापित हैं।
मंदिर के परिसर में प्रसाद सेवन का व्यवस्था भी है। यह मंदिर खारवेल नगर में है, जो कि भुवनेश्वर के केन्द्र स्थल पर है।
कहाँ स्थित है ?
मंदिर खारवेल नगर के पास स्थित है। |
वास्तु विवरण
यह मंदिर सन् 1979 में स्थापित किया गया था। शहर के कई हिस्सों से दिखाई देने वाले मुख्य मंदिर का ऊंचा शिखर इसका मुख्य आकर्षण है। |
मंदिर दर्शन का समय
मंदिर सुबह 8 बजे से 12 बजे तक दर्शन के लिए खुले होते हैं फिर 4 बजे से रात के 8 बजे तक खुला रहता है। |
प्रवेश शुल्क
निशुल्क |
विशेष समारोह
रामनवमी – हर वर्ष रामनवमी उत्सव पर मंदिर को सजाया जाता है। मंदिर में यज्ञ का आयोजन भी किया जाता है। |
11. इस्कॉन (ISCKON) मंदिर: आध्यात्मिक और शांतिपूर्ण वातावरण वाला मंदिर
इस मंदिर एक पार्श्व पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा विराजमान हैं और दूसरे पार्श्व पर राधा कृष्ण और तीसरे पार्श्व पर चैतन्य महाप्रभु की प्रतिमा विराजमान हैं।
यह मंदिर में मूल रूप से वैष्णव धर्म का प्रचार करता है। जगन्नाथ मंदिर की तरह यहां पर हर पूजा विधि का पालन किया जाता है।
कहाँ स्थित है ?
मंदिर नयापल्ली मार्ग और NH 5 सड़क के निकट है। |
वास्तु-कला विवरण
यह मंदिर सन् 1991 में स्थापित किया गया था। मंदिर के द्वार पर कृष्ण लीला, माता यशोदा के प्रति उनका भक्ति भाव, राधा के संग उनका प्रेम भाव का पटचित्र अंकित है, जो हर किसी के मन में धार्मिक भावना जागृत करेगा। |
मंदिर दर्शन का समय
8 am- 9 pm |
प्रवेश शुल्क
निशुल्क |
विशेष समारोह
रथयात्रा पर्व पर तीन मूर्तियों का यात्रा पर्व आयोजन किया जाता है। जन्माष्टमी पर्व भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। |
भुवनेश्वर के हर एक मंदिर एक उत्कृष्ट शिल्पकला का प्रमाण है जो भारतीय संस्कृति और परंपरा को दर्शाता है। हमारे पूर्वजों का धरोहर है जो हमें हमारे संस्कृति को बचाए रखने की आह्वान देते हैं। इन मंदिरों की सुरक्षा करना और देश विदेश में उनके कलाकृतियों का प्रसार करना भी हमारी ज़िम्मेदारी है।